Wednesday, October 22, 2008

एक और ख़त

प्रिय .........,
कल रात जब मैं सोने गया तो सिर्फ़ और सिर्फ़ तुम्हारा चेहरा मेरी आखों मे था मेरी नींद को न जाने कब और कैसे तुमने चुरा लिया पता ही नही चला। अब मैं उस पतंग की तरह हूँ जिसकी डोर तुम्हारे पास है न जाने कब और क्यों तुम मुझे उस डोर से खुद तक खीच लेती हो और मैं बिना किसी विरोध के तुम्हारे पास चला आता हूँ अब तो मेरे आसमा मे न तो दूसरी पतंग है न ही दूसरी कोई डोर जो कुछ है मैं और तुम ही हैं । मेरी तुमसे बस इतनी सी गुजारिश है कि तुम मुझे कुढ़ से मत छोड़ देना नही तो मैं न जाने कहा और किस आसमान मे उड़ता रहूँगा।

अच्छा लगा कल रात तुमसे फ़ोन पर बात करके, मुझे पता है कि आज भी हम फ़ोन पर बात कर सकते थे लेकिन मुझे लगा कि भावनाओ को व्यक्त करने के लिए आज के युग मे भी पेन और पेपर से अच्छा कोई साधन नही है । ख़त मे लोग एक दुसरे का चेहरा भी देख लेते है अब मुझे लगता है कि ये बात सच है। इससे पहले ऐसा कभी महसूस नही हुआ । अब तो हर वक्त तुम्हारा ख्याल रहता है हर वक्त ।

कोलेज ख़तम होते ही मैं फिर से कोलेज सुरु होने का इंतज़ार करने लगता हूँ । बातें अभी और भी है जिन्हें मैं अभी नही बताना चाहता , पता नही तुम्हे मेरा ख़त लिखना कैसा लगे।
ढेर सरे प्यार के साथ ख़त लिखना बंद करता हूँ ।

तुम्हारा..............................

1 comment:

Anonymous said...

khat thoda bada hota to zyada accha lagta