Saturday, October 18, 2008

कुछ मैं और कुछ वो.....८




ऐसे ही बेहतरीन कुछ दिन मेरी लाइफ मे आए , लेकिन इन बेतरीन दिनों के साथ साथ End Semester Exmas भी उतनी ही तेजी से आ गए। और अबतक मैंने कोई खास पढ़ाई नही की थी और करता भी कैसे पढ़ाई के लिए टाइम ही नही मिलता था । उन दिनों कुछ दोस्त PSUs के फार्म फिल कर रहे थे और मेरे कोलेज के कुछ नए टीचर्स भी । मैंने बड़ी मेहनत से पता कर लिया की निमिषा मैडम भी BHEL का फॉर्म भर रही थी , और बातों ही बातों मे उन होने मुझे यह भी बता दिया की वो दिल्ली मे PSUs के EXAMs देना प्रेफेर करती थी । हालकी मैं कभी भी PSUs की जॉब प्रेफेर नही करता था लेकिन मैडम ने फॉर्म डाला था तो मैंने भी फॉर्म भर दिया । बनारस सेंटर होते हुए भी मैंने दिल्ली सेंटर डाला । मैं बहुत खुश था की ट्रेन मे साथ जाने को मिलेगा ।



DAY40 (शायद )
रात 11:00 PM प्लेट फॉर्म नम्बर ५ , कानपूर रेलवे स्टेशन



मैं और मेरे दोस्त साथ मे कुछ सर लोग और कुछ मैडमें प्लेट फॉर्म नम्बर ५ पर ट्रेन का इंतजार कर रहे थे ।
मैं एक बुक स्टाल पर खड़ा कुछ किताबें पलट रहा था , तभी प्रवेन्द्र आया ।



प्रवेन्द्र: अबे तुम्हारी मैडम आ गई ।
मैं : हाँ पता है
प्रवेन्द्र : अबे बात नही करोगे क्या ।
मैं: सेल देखता नही है वो साला भावेश ( टीचर ) कब नही नही हट रहा । कोलेज मे भी हमेशा चिपका रहता है है और यहाँ भी ।
प्रवेन्द्र : अभी चला जाएगा
मैं: क्या चला जाएगा । वो जाएगा तो कोई और आएगा साला ऐसा लगता है की सारी दुनिया को वही आज काम है
प्रवेन्द्र: तो तुम बाद मे मिल लेना ।
मैं: हाँ यार बाद मे मिलूँगा अभी जरा कोच तो कन्फर्म कर लूँ ।
तभी रेलवे द्वारा उदघोषणा हुई ।


उदघोषणा : (बड़े ही मीठे स्वरों मे ) यात्रीगण कृपया ध्यान दे,गया से चल कर को नई दिल्ली जाने वाली 2397 अप MAHABODHI EXP कुछ ही समय ने प्लेटफॉर्म नम्बर पाँच पर आ रही है ।



प्रवेन्द्र : अबे चल सब साथ हो लेते है।
मैं: हाँ चल , ................ अच्छा तू चल मैं आ रहा हूँ ।
प्रवेन्द्र : ये सब बाद मे कर लेना ।
मैं: अबे देख तो लूँ किस तरफ़ जा रहीं है ।
प्रवेन्द्र ; अच्छा देख लेते है , लेकिन यार वो तो अभी भी वहीँ खड़ी है ।
मैं: सब तुम्हारी तरह जल्दी बजी नही करते.......



उदघोषणा : (बड़े ही मीठे स्वरों मे ) यात्रीगण कृपया ध्यान दे,गया से चल कर नई दिल्ली को जाने वाली 2397 अप MAHABODHI EXP कुछ ही समय ने प्लेटफॉर्म नम्बर पाँच पर आ रही है ।


प्रवेन्द्र : चल ।


मैं : तू चल मैं आता हूँ।
प्रवेन्द्र : ठीक है मैं तो चला ।
मैं वही खड़ा था उसी बुक स्टाल पर , बुक वाले ने भी पूछ लिया भइया कुछ लेना है तो रुको नही तो कोई किताब मत खोलो ।
मैं: (झल्लाते हुए ) INDIA TODAY दे दो।



मैंने जेब से १० का नोट निकाल कर उसे दिया तब तक ट्रेन की आवाज़ सुने दी ॥पों ..................पों , असा लगा जैसे भूचाल आ गया हो । पर मैडम अभी भी वही खड़ी थी बिना किसी Reaction के और साथ मे मिस्टर भावेश भी थे , कई बार कोलेज मे इनके चर्चे सुनने को मिल चुके थे । पर मुझे ख़ुद पर मिस्टर भावेश से ज्यादा विस्वास था ।



अभी मुझे ख़ुद की काबलियत पर शक होना सुरु ही हुआ था कि ....



उदघोषणा : (बड़े ही मीठे स्वरों मे ) यात्रीगण कृपया ध्यान दे, नईदिल्ली से चल कर मुज़फ्फर पुर को जाने वाली 4006 अप LICHCHAVI EXP कुछ ही समय ने प्लेटफॉर्म नम्बर चार पर आ रही है ।
और मैंने देखा कि निमिषा मैडम ने मेरी ओर नज़रे गुमाईऔर इशारे से चलने को बोला । फ़िर



उदघोषणा : (बड़े ही मीठे स्वरों मे ) यात्रीगण कृपया ध्यान दे, नईदिल्ली से चल कर मुज़फ्फर पुर को जाने वाली 4006 अप LICHCHAVI EXP कुछ ही समय ने प्लेटफॉर्म नम्बर चार पर आ रही है ।



मैं अब समझ चुका था मामला उल्टा हो गया है । उनके पास बनारस की टिकेट थी और मेरे पास दिल्ली की अब क्या किया जा सकता था, अब तो ट्रेन भी छुटने वाली थी ।



थोडी देर बाद का नज़ारा कुछ इस तरह था मैं एक ट्रेन की खिड़की पर और वो दुसरे ट्रेन की खिड़की पर ........ दो पल रुका ख्वाबों का कारवां और फ़िर चल दिए तुम कहाँ........ हम कहाँ ।
हम केवल एक दूसरे को सी ऑफ़ कर सके पर मेरे दोस्तों को पूरी रात मेरा मजाक उड़ने का अच्छा मसाला मिल गया था ।




Friday, October 17, 2008

कुछ मैं और कुछ वो ...७




DAY 31 (शायद)
आज शायद मेरी किस्मत कुछ अच्छी थी जैसे ही मैं उनके घर के बहार से गुजरने वाला था कि उनके घर का गेट खुला । और वह रे मेरी किस्मत............... दादी जी बहार निकली । अमीन अपनी चलने कि स्पीड एकदम कम कर दी , ये भगवान् भी कभी कभी गेम करता है दादी जी जैसे ही गेट के अन्दर घुसी , कि अन्दर से मदेम कि एंट्री हुई बिल्कुल "मैं हूँ ना " कि सुस्मिता कि तरह । सुस्मिता ( मैं हूँ ना) से कम्पयेर करने के पीछे भी मेरा एक लॉजिक था । एक तो मैं शाहरुक खान जी का बहुत बड़ा फैन हूँ दूसरा सुस्मिता जी ने उस फ़िल्म मे टीचर का किरदार निभाया था । अगर ये कोई फ़िल्म होती तो मैं भी director से बोल कर इस सीन मे एक मस्त सा गाना डलवा देता । मैंने अपनी स्पीड अब एकदम से बढ़ा दी और जल्दी से उनके साथ हो लिया।




मैं: गुड मोर्निंग मैडम

मैडम: गुड मोर्निंग मनीष ।

मैडम: कल तुम नही आए।




अब मैडम ये भी ध्यान रखने लगी थी की मैं कब कोलेज नही गया । वाह ! मनीष वाह! मैंने ख़ुद ही अपनी पीठ थपथपाई ।




मैं: हाँ कल मैं थोड़ा बीमार हो गया था।

मैडम: ठण्ड ज़्यादा है थोड़ा ध्यान रखा करो ।

मैं: हाँ



अब हम वहा तक पहुच चुके थे जिस स्थान ने हमे मिलवाया था G.T .Road के दूसरी तरफ़ ..... रेस्टुरेंट के सामने ।


G.T .Road के दूसरी तरफ़ ..... रेस्टुरेंट के सामने
9:20 AM
मैं: वो मैंने फोटो ग्राफ्स दिए थे दादी जी को आपको मिल गए।
मैडम: हाँ मिल गए थे और मैंने मीत को दे भी दिए थे ।
मैं सोचने लगा था की शायद निमिषा मैडम ने मेरी फोटोग्राफ्स देखी हो मैं कुछ बोलता उसे पहले ही
मैडम: फोटोस अच्छी थी , उनको देख कर लग रहा था तुम अच्छी एक्टिंग करते हो ।
मैं:थैंक यू । आपकी बस आ गई ।
मैडम: हाँ चलो मैं चलती हूँ ।


मीत मैडम और सुदेशना मैडम दोनों बस मे बायी तरफ़ पीछे खिड़कियों वाली सीट पर बैठी थी , जैसे ही उन्होंने मुझे देखा आपस मे कुछ बात करने लगी और तो और मीत मैडम मुझे घूरती उससे पहले मैंने अपनी नज़र नीची कर ली ।

कुछ मैं और कुछ वो ..६




दो दिन बाद .............



DAY 30 (शायद )
सुबह सुबह यही कोई 8:30 AM , मैंने आज तय किया था की आज कोलेज नही जाऊंगा , कोई खास क्लास भी नही थी, मेरे कोलेज न जाने के पीछे भी एक लॉजिक था जो पिछली रात के वजह से था। कल रात मैंने मैडम को फ़ोन किया था ।



पिछली रात
DAY 29 ( शायद)



लगभग रात 9:00 बजे । ठण्ड मे कांपते हुए , हमारे घर ( कानपुर मे जिसमे मैं और मेरे दोस्त रहते थे ) की छत पर , मैं पूरी तरह से ठण्ड का आनंद ले रहा था पर असल मे मैं ठण्ड और घबराहट दोनो वजहों से काँप रहा था ।



रात पूरी तरह से काली थी चाँद मुझे देख कर मंद मंद मुस्कुरा रहा था । शायद चाँद तारों को पता था की मेरे मन के अन्दर किस तरह की भावनाए सागर ली लरों की तरह हिलोरे भर रही थी । जब मैंने मैडम से उनका फ़ोन नम्बर माँगा था तब भी इतनी घबराहट नही हुई थी जीतनी मुझे उन्हें उस दिन फ़ोन करने से पहले हो रही थी ।
कभी घड़ी देखता तो कभी छत से दूसरो के कमरों मे देख कर टाइम पास कर रहा था लेकिन अभी तक फ़ोन करने कि हिम्मत नही हुई थी ।



9:45PM
अब तक तो मेरे हाथ बर्फ कि तरह जम रहे थे मुझे 7-8 degree तापमान मे खुली छत पर घुमाते हुए ४५ मिनट से भी ज्यादा हो चुका था अब तो घाल भी टमाटर हो रहे थे , और मैंने बड़ी हिम्मत करके फिल्मी स्टाइल मे अपनी फिल्मी हेरोइन माननीया एंजलिना जोली जी को फ़ोन लगाया ।



मोबाइल फ़ोन कि घंटी बजते ही ...........
फ़ोन: ट्रिंग ट्रिंग.......
मेरा दिल : जय हनुमान ज्ञान गुन सागर
जय कपीस तिह लोग उजागर
राम दूत अतुलित बलधामा
........................................



अभी मेरा मन तरीके से डर को भगा नही पाया था कि दूसरी तरफ़ से फ़ोन से आवाज़ आई ।



मैडम: हैलो
मैं: हैलो
मैडम: कौन ?
मैं: मैं मनीष ।
मैडम: बोलो मनीष ।
मैं: आ..आप कल से को... कोलेज नही आई ।
मैडम: हाँ घर आ गई थी कुछ काम था । और तुम कांप क्यों रहे हो?
मैं: वो ॥ वो ठण्ड लग रही है ।
मैडम: क्या कहीं बहार हो ?
मैं: नही छत पर आया हूँ सोचा कि आप से पूछ लूँ कि आप कि तबियत तो ठीक है न।
मैडम:( हँसते हुए ............ । ) चलो मैं ठीक हूँ तुम जाओ नीचे नही तो मुझे तुम्हे फ़ोन करके पूछना पड़ेगा कि तुम तो बीमार नही हो।
मैडम: क्या हुआ? कल दोपहर तक कानपुर आ जाउंगी और परसों से कोलेज।
मैं : ओके बाय बाय
मैडम: गुड नाईट । जाओ सो जाओ



और उन्होंने फ़ोन काट दिया , मेरे आस पास का तापमान अचानक से २० डिग्री तक पहुँच गया था मौसम बहुत अच्छा लगने लगा था । मैं इसी मस्ती और सोच विचार मे १५ मिनट तक छत पर और रुक गया था ।



वापस
DAY 30 (शायद)
8:30 AM
विकास: अरे सर जी उठिए ।
मैं: अरे यार सर मे दर्द हो रहा है ।
विकास: क्यो? कोलेज नही चलाना है
मैं: नही मेरी तबियत नही ठीक है ।
प्रवेन्द्र : कल रात तुम कहाँ गए थे ।
मैं :वही तो भुगत रहा हूँ। यार मत जगाओ नींद आ रही है और फीवर भी है ।
पूरा शरीर दुःख रहा था और सच मे बुखार हो गया था , मैं सोच रहा था कि अगर जल्दी बात करली होती तो ये दर्द न सहना पड़ता । खैर प्यार मे हर दर्द मीठा लगता है बस यही सुकून था ।
तभी ॥
दीपक: (अपने स्टाइल मे केवल अंडर गारमेंट्स मे भागता हुआ ) क्या हुआ सर जी ।
मैं: साले ले लो । इंतना दर्द है ऊपर से तुम मेरे ही ऊपर कूद रहे हो ।
दीपक: सॉरी सर।
मैं: (नाराज़ होते हुए ) क्या बक... ( गली) है , तुम अभी जाओ ।



आज फ़िर सुबह 9:20 मिनट हो गए थे और सभी धीरे धीरे जा रहे थे मुझे सिर्फ़ छोड़ कर मैं अपनी करनी पर भुगत रहा था। पर एक बात का सुकून अभी भी था कि आज मुझे जी टी रोड कोई मिस नही करेगा ( असल मे जस्ट इसका उल्टा)। मैं किसी तरह से नहा धोकर कुढ़ को शीशे मे अच्छी तरह से देखकर फ़िर सो गया । असल मे अगर आप ख़ुद से ज्यादा सुंदर इंसान को प्यार करे दो शीशा आपका अच्छा दोस्त हो जाता है ।



दोपहर तक तबियत मे कुछ सुधर महसूस होने पर मैंने सोचा कि अब क्या किया जाए । तभी ख्याल आया कि मीत मैडम ने मुझसे कुछ फोतोग्रप्स मंगवाए थे । मैंने अपनी अलमारी से एल्बम निकला और उसमे से function कि अच्छी अच्छी फोटोस अलग कर ली अब उनमे भी अपने प्ले कि अलग कर दी और हर फोटोस के पीछे बहुत अच्छे अच्छे कमेंट्स लिख दिए असल मे मैंने सोच लिया था कि ये फोटोग्राफ्स मैं निमिषा मैडम के हाथो ही मीत मैडम तक पहुचवाउंगा । और ये भी सोच लिया कि एक बार और कल कि सुबह जी टी रोड को अलविदा कहा जाए ,प्यार मे हिन्दी उर्दू के बहुत क्लोसे हो जाती है तो मैं भी थोड़ा थोड़ा उर्दू मे भी सोचने लगा था ।


रात 8:30 बजे
मैडम के घर के बहार
मैं घर कि बेल बजाते हुए इस उम्मीद मे कि मैडम दरवाजा खोलने आएँगी । पर हुआ खुदा को कुछ और ही मंजूर था ( उर्दू...........................) ।


कौन है .... एक लडखडाती हुई आवाज़ सुनाई दी ।



मैं: दरवाज़ा खोलिए ।
अन्दर से एक बूढी दादी निकली और जैसे उन्होंने मेरी सारी आशाओं पर उन्होंने जाडे कि रात मे ठंडा पानी डाल दिया हो ।
दादी जी : क्या है ?
मैं: वो निमिषा मैडम है ।
दादी जी : हाँ है ।
मैं: क्या मैं मिल सकता हूँ
दादी जी : क्या काम है वो ऊपर रहती है ।
मैं:वो कुछ फोटोस देने थे उनको ।
दादी जी : अच्छा फोग्रफर हो । पैसे लेने है ।
मुझेतो ऐसा लगा कि जैसे किसी ने मेरी काबलियत पर शक किया हो । खैर मैं तो इस इंतज़ार मे था कि शायद ऊपर जाने को मिले ।
मैं: नही मैं उनका स्टुडेंट हूँ
दादी जी : फोटोस दो और जाओ ।
मैं: ठीक है ।



मैंने फोटोस दादी जी को दी और दुखी मन से वापस आ गया , एक अच्छा काम मैंने किया था कि सारी फोटोस को लिफाफे मे बंद कर के ( लिफाफा मैं चिपकाया नही था) और लिफाफे के ऊपर लिख दिया था कि फोटोस मीत मैडम को दे दीजियेगा मैं कल कोलेज आ नही सकूँगा। वैसे तो दादी जी ने मेरा सारा प्लान चौपट कर दिया था । मैं बस मैडम को देखना चाहता था और वो भी नही हो सका था ।



DAY 31 (शायद)
9:20 AM
......रेस्टुरेंट के सामने GT Road के दूसरी तरफ़ ..........................

Wednesday, October 15, 2008

कुछ मैं और कुछ वो .................५

9 : 20 AM
मैं अब कभी भी यहाँ तक पहुँचने मे देर नही करता था अक्सर मैं और प्रवेन्द्र साथ ही आते थे। आज भी हम दोनों साथ ही थे पर
शायद आज प्रवेन्द्र जल्दी जाने के मूड मे नही था जैसे वो हमेशा करता था और मैं सोच रहा था की काश ये जल्दी से जाए , अब तक उसने दो रूट नम्बर २ बसे छोड़ दी थी यही बहाना बना के कि उनमे भीड़ है , सच बात ये थी कि वो देखना चाहता था कि हम लोग ( मैं और मैडम ) क्या क्या बातें करते है ।
9 : 40 AM
मैं: अबे जाएगा नही क्या ?
प्रवेन्द्र : यार कैसे जाऊँ आज तो बसों मे बहुत भीड़ है ।
मैं : वो तो रोज़ होती है ।
प्रवेन्द्र : होती तो है लेकिन आज कुछ ज़्यादा ही है ।
मैं: साले तुम्हारा जाने का मन ही नही है। एक बात और मैडम आए तो दूर जाकर खड़े हो जाना यहाँ मत रहना।
प्रवेन्द्र: ठीक है ।
कोलेज जाने का केवल यही रास्ता था तो हमे लगभग हर कोई रोड पर खड़ा हुआ देखता था और अब तो कोलेज मे भी कुछ स्टूडेंट्स ने बोलना शुरू कर दिया था। खासकर वो लोग जो मुझे अच्छी तरह से जानते थे ।
लेकिन इन बातों का असर मुझ पर कभी नही पड़ा । मैंने कभी समाज के साथ चलने कि कोशिश नही कि थी मैं तो बस अपनी ही धुन मे मस्त रहता था । तभी तो एक बार अच्छा खासा धोखा खा चुका था ।
मैं: यार आज अभी तक मैडम नही आई, मेरी घड़ी मे तो 9:50 मिनट हो रहे है ।
प्रवेन्द्र : अबे आज छुट्टी पर होंगी ।
मैं: पता नही ।
प्रवेन्द्र : पता नही तो चलो कोई भी ऑटो कर के नही तो देर हो जायेगी
मैं: चलो चले ।
हमने एक ऑटो पर चढ़ गए । आज प्रवेन्द्र कुछ सीरियस लग रहा थातो मौंका देख कर मैंने पुछा
मैं: क्या हुआ कोई बात ?
प्रवेन्द्र: नही बस यूं ही ।
मैं: बोलो बोलो , पूर्वी से बात हुई क्या ?
प्रवेन्द्र : हाँ कल हुई थी ।
मैं: साले तो तुम अब बता रहे हो ।
अब जा कर मुझे समझ आया कि आज प्रवेंद्रे ने इतनी बसे क्यो छोड़ दी थी ? बात कुछ सीरियस थी ।
मैं: क्या हुआ ?
प्रवेन्द्र: कल वो ख़ुद मेरे पास आई थी और बोलने लगी कि तुम मुझे अब ईमेल मत करना ।
मैं: अबे यार कल से आज तक तूने नही बताया । चल छोड़ अब बता क्या हुआ?
ऑटो मे आज सिर्फ़ हमने दो ही बैठे थे ओ उसको मुझसे बात करने मे कोई दिक्कत नही हो रही थी ।
प्रवेंद्र्स: यार हुआ क्या मैंने भी बोल दिया ठीक है मैं नही करूँगा ।
मैं: तो अब ।
प्रवेन्द्र: तो अब क्या ? अब आका बूल रहे है कि वो ट्राई करेंगे।
आका ( AKA) मतलब अक्षत कुमार अग्रवाल (akshat kumar agrawal) प्रवेन्द्र के क्लास मेट और मेरे अच्छे दोस्त । आका थे ultimate बक... (हमारी लैंगुएज मे ) , बस जिस चीज़ के पीछे लग जाए उससे ही हासिल कर के छोड़ते थे । हमने कोलेज पहुँच ही गए थे और मेरे दिमाग से निमिषा मैडम के कोलेज से छुट्टी लेने वाली बात नही निकल रही थी । हांलाकि ये कोई बड़ी बात नही भी हो सकती थी पर प्यार मे घबराहट होने लगती है ।
मैं: प्रवेन्द्र यार कोलेज आ गया है इस मामले मे बाद मे बात करते है चल दौड़ क्लास छूट रही है प्रवेन्द्र: हाँ चल ।
प्रवेन्द्र दौड़ कर अपनी क्लास मे चला गया, पर मैं भी दौड़ा पर क्लास कि तरफ़ नही बल्कि electrical department के टीचर्स रूम कि तरफ़ ये देखने कि कहीं मैडम पहले तो नही आ गई , दिमाग ने न जाने क्या क्या ख्याल आ रहे थे कहीं उन्होंने अपना घर तो नही बदल दिया या कहीं वो लम्बी छुट्टी पर तो नही चली गई । मैं अभी electrical department के टीचर्स रूम तक पहुँचा भी नही ता कि रस्ते मे मीत मैडम मिल गई ।
मीत मैडम: कहाँ भागे जा रहे हो ।
मैं: कहीं नही ।
मीत मैडम: चलो क्लास मे जाओ ।
मैं: हा जाता हूँ।
मीत मैडम: चलो क्लास मे जाओ । ( डांटते हुए)
मेरी सिट्टी पिट्टी गम हो चुकी थी मैं वापस क्लास रूम कि तरफ़ भगा । क्लास भी किसकी थी
prof . P.N.KAUL आज अब मुझे पूरा विश्वास हो रहा था कि भगवान् जी आज जरूर कुछ नया गुल खिलाएंगे। क्लास मे पहुंचाते ही मैंने क्या देखा कि kaul सर मिड सेमेस्टर कि कंपिया दिखा रहे थे । और मेरे एक और अच्छे दोस्त राहुल सक्सेना जी मेरी और कुढ़ दोनों कि कापिया जांच रहे थे । राहुल हमारे क्लास काल टॉपर था और मेरा बहुत अच्छा दोस्त मुझे लगता है पूरे क्लास मे मेरा ही सबसे अच्छा दोस्त था वो ।
मैं: सर मे आई कम इन?
कौल सर : आइये आइये ।
मेरे दिल कि धड़कन ने तेज़ी से दौड़ना सुरु कर दिया था और कौल सर को देखने के बाद तो सारा प्यार अब उड़ चुका था । कौल सर कि पेर्सोनालिटी कुछ इस तरह से थी लगभग ५ फुट ८ इंच लंबे , गोरे, यही कोई ६० साल उम्र , सर पर कम बाल और पैंट ऊपर लंबा कुरता । पेर्सोनालिटी मे कोलेज के सबसे dashing पुरूष टीचर । उनको देख कर पूरा कोलेज घबरा जाता था तो मेरे प्यार कि क्या बात थी। प्यार कब गायब हो चुका मुझे पता भी नही चला था ।
उसी दिन लंच के वक्त तक मैंने पता कर लिया था कि मैडम दो दिन leave गई हुई थी । पर उन्होने मुझे बताया नही था पर मैंने अपने सभी दोस्तों को यही बताया था कि वो मुझे बता कर गई थी । आख़िर इज्ज़त का सवाल जो था।
contd.............






कुछ मैं और कुछ वो ......४

अब हम लगभग रोज़ बातें करने लगे थे और एक दूसरे को अच्छी तरह से समझने लगे थे, मेरी दिल मे अब तक उनके लिए बहुत ज़्यादा इज्ज़त बढ़ चुकी थी , शायद अब मैं सच मे उनको पसंद करने लगा था , अब खेल खेल नही रह गया था अब मैं serious हो रहा था , लेकिन मुझे रात मे कभी भी उनके सपने नही आए थे शायद इसके पीछे कारण कुछ और था वो ये की मैं अभी तक किसी को भूल नही पाया था । अभी जल्दी ही मेरा ब्रेक ऑफ़ हुआ था , वैसे इस ब्रेक ऑफ़ मे मैं बहुत खुशनसीब निकला क्योकि सच्चाई ये थी मैं उसके के साथ आपना ये सम्बन्ध आगे नही बढ़ा सकता था । तो मैंने यहाँ अपने नए प्यार को रोकने की कोशिश करनी शुरु कर दी ।

अब मैं कुल लगभग ४ -५ दिन कोलेज उस जगह से कोलेज जाना छोड़ दिया ।

कब तक रोक पता ख़ुद को और एक दिन ..........

DAY 25 ( शायद)
......रेस्टुरेंट के सामने GT Road ..........................
9: 00 AM
काफी ज़्यादा कोहरा था और ठण्ड भी बहुत थी की तभी मेरे आगे एक ऑटो रिक्शा रुका , वैसे तो कल की तरह आज भी कोलेज की छुट्टी थी और मैं मेडिकल कोलेज जाने के लिए रुका था कोई चांस नही था की निमिषा मैडम से मुलाक़ात हो ।

हैलो मनीष कैसे हो एक मीठी सी आवाज़ ने मुझे उस ठण्ड भरी सुबह मे अचानक से मेरे कानो मे गर्माहट ला दी आवाज़ पहचानी हुई थी। मैंने देखा जो ऑटो मेरे सामने रुका था उससे निमिषा मैडम उतर रही थी ।

मैडम: हैलो मनीष कैसे हो ?
मैं: ठीक हूँ मैडम आप कैसी है और इतनी सुबह सुबह आप कहाँ से आ रहीं है ?
मैडम: घर से

अब तक मुझे पता चल चुका था कि उनका घर लखनऊ मे था , बल्कि यूँ भी कह सकते है कि लखनऊ भी शायद उनका परमानेंट ऐडरेस नही था ,मैडम के फादर ऐसी जॉब मे थे जिसमे ट्रान्सफर बहुत जल्दी जल्दी हो जाया करता था । कुछ ही दिनों बाद वो लोग इलाहाबाद शिफ्ट हो गए थे।

मैं तो बस उनको देखता ही रह गया था जींस , ओवर कोट और स्पोर्ट्स शूज़ मे वो किसी hollywood कि anglina jolie से कम नही लग रही थी बस इतना देखते ही मैं अपने काम पर फ़िर लग गया । उनके पास इस टॉम रायडर कि हेरोइन के जैसे काफी सामान था और शायद उसको उनके पापा या भाई ने ही ट्रेन पर चढ्या होगा ।

मैं: मे आई हेल्प यू ? (मैंने बड़े ही स्टाइल से पुछा )
मैडम: नो ... नो.. आई कैन डू इट
मैं: जाने दीजिये बहुत सामान है ।
मैडम : ओके तो हेल्प करो
मैं: (एक बैग और सूटकेस पकड़ते हुए ) इतना सारा सामान आप कहाँ से ले आई ?
मैडम: वो घर से
मैं: ओके

मैं उनके रूम तक सामान ले कर गया पास ही था और गेट के बहार मैं उनको छोड़ कर आ गया। शायद उनके लैंड लोर्ड ( माकन मालिक) किसी बाहरी लड़के को देख कर नाराज़ होते । मैं इस बात को समझ ता था तभी तो मैडम के घर न बुलाने का कारण समझ गया था । उनका घर ( कानपुर मे ) उसी गली मे था जिसे पार करता हुआ मैं कोलेज के लिए बस पकड़ता था , मुझे ये तो पता था कि वो first flour पर रहती थी पर हमेशा उन खिड़कियों पर परदा लगा रहता था ।

गेट के बहार
मैडम: थैंक यू मनीष
मैं: ओक बाय बाय
और मैं वह से वापस ऑटो पकड़ कर मेडिकल कोलेज आ गया ।

पर उस दिन शायद मेरा दिल मुझ से लड़ रहा था कि मैंने शर्त लगा कर गलती की, शायद मुझे सच का प्यार हो गया था । इस लडाई के और भी कई कारण हो सकते थे शायद मेरे ब्रेक ऑफ़ के इतनी जल्दी फ़िर से मैं प्यार मे .................... पता नही क्या क्या ? मन मे एक जबदस्त द्वंद शुरु हो गया था । मैं ये सोच रहा था की मैं कब सुधारूँगा , बचपन से आज तक न जाने कितनी बार प्यार मे खो चुका था । अब तो पता भी नही चलता था की ये प्यार है या बस एक सम्मोहन । ऐसा बहुत कम होता है लाइफ मे जब ख़ुद से ही ख़ुद का टकराओ हो और जब हो तो समझ लेना चाहिए की कोई बड़ी सीरियस बात है । अंतत: मैंने ये सोचा की मनीष त्रिपाठी तुम आगे बढो देखा जाएगा जो भी होगा ।

DAY 26 (शायद)
कोलेज मे मैं और सुदेशना मैडम उनके ऑफिस मे साथ बैठे थे और क्लास की बातें कर रहे थे। अब तो सुदेशना मैडम मुझे नही पढाती थी लेकिन मैं फ़िर भी उनसे मिलने चले जाया करता था बहुत अहसान है उनके मुझ पर। तभी वहाँ मीत मैडम आ गई ।
मीत मैडम : अच्छा तो आप भी यहाँ है ( मेरी तरफ़ इशारा करते हुए)।

मैं: हाँ
सुदेशना मैडम : अरे हाँ ये तो बहुत देर से बैठा है ।
मैं: मैं जाऊ क्या ?
दोनों लोग साथ साथ : नही नही तुम जाओ मत
मीत मैडम: बेटा अभी तो तुमसे बहुत काम है ।
मैं समझ गया था इशारा किस तरफ़ है और ये भी की इसके पीछे कौन कौन है विवेकानंद और शिखर मिश्रा , जब नाराज़गी हो तो पुरा नाम लेना होता है तभी तो विवेकानंद और शिखर मिश्रा ।
मीत मैडम: क्या मनीष सुधर जाओ
मैं: नही मैडम ऐसी कोई बात नही है ।
सुदेशना मैडम: मनीष सुधर जाओ ।
मैं: मैडम ऐसा कुछ भी नही है ।
मीत मैडम: न हो तो बेहतर है।
मैं: अच्छा तो अब मैं चलू ।
मीत मैडम : अच्छा हाँ तुम्हारे पास पिछले साल के annual function के फोटो ग्राफ्स है न ।
मैं: हाँ है
मीत मैडम: कल मुझे दे देना
मैं: ओके

मैंने इतना भी नही पूछा किक्यो चाहिए। बाद मे पता चला कोलेज कि वेब साईट के लिए चाहिए थे । मुझे अगर किसी से डर लगता था कोलेज मे तो केवल मीत मैंम से और किसी से नही हलाकि वो प्यार मुझे बहुत करती थी ।

DAY 27 (शायद)
......रेस्टुरेंट के सामने GT Road के दूसरी तरफ़ ..........................
contd.......

Tuesday, October 14, 2008

कुछ मैं और कुछ वो ...............३

ऑटो रिक्शा यही कोई 30km/hr की स्पीड से चला जा रहा था मेरे मन मे आया ऑटो वाले को बोल दूँ कि भइया क्यों इतना तेज़ चला रहे हो ? पूरे६ दिन कि मेहनत के बाद तो कम से कम एक ही ऑटो मे बैठने को मिला है । जैसे जैसे ऑटो कि स्पीड और बढ़ रही थी मेरी ईश्वर के प्रति श्रधा भी उतनी ही तेज़ी से बढ़ रही थी ................ मैं ये सोच रहा था हे भगवान कुछ भी करके मुझे पीछे ( ऑटो की पिचली सीट पर ) भेज दो ।

माईल स्टोन नम्बर १ राम डेंटल कॉलेज बीत गया कोई नही उतरा और मेरी घबराहट और बढ़ गई । मैं ये सोच रहा था की साला इतने छोटे से सफर मे मैं कुछ भी कर के ऑटो मे पीछे बैठ जाऊँ। माईल स्टोन नम्बर २ कानपुर युनिवेर्सिटी के पास जैसे ही ऑटो को पीछे से एक बहुत ही अच्छे व्यक्ति ( कम से कम उस वक्त के लिए तो था ही ) ने रोकने के लिए कहा मेरी तो जैसे दिल की पतंग आसमां छूने लगी ।जब तक मैं नीचे उतरता ॥

निमिषा मैडम : (मुझे पीछे से अपनी जादुई उँगलियों से इशारा करते हुए ) पीछे आ जाओ ।

हाय मेरी तो साँस ही रुक गई थी

मैं: हां.............. हां अ॥ अ..... आया । (घबराते हुए)

और मैं पीछे जा कर ऑटो मे बैठ गया । ऑटो मे पीछे भगवान् की दया से आज कम भीड़ थी और शायद आज वो कुछ ज़्यादा ही मेहरबान था हम दोनों एक दूसरे के सामने बैठे थे , हमारे पैर के गुठने एक दूसरे से टकरा रहे थे और मैं तो अपने पैर हटाना नही चाहता था और वो शायद हटा नही पा रहीं थी । आज उन्होंने हरे रंग का सलवार कुर्ता पहन रखा था वैसे अगर मुझसे कोई पूछे तो मैं तो यही कहूँगा की उनपर पिंक रंग ही सबसे अच्छा लगता था ।

माईल स्टोन नम्बर ३ कल्याण पुर क्रॉसिंग तक हम पहुच चुके थे और अभी तक कुछ बात भी शुरू नही हुई थी । वैसे मैं लड़कियों से बात करने मे कभी देर नही लगता हूँ पर वो एक टीचर थी । जितना अब तक मुझे याद है उसके अनुसार उनकी लम्बाई यही कोई ५ फीट ७ इंच के आस पास रही होगी , गोरी तो वो बहुत थी उनके कंधे तक बाल जब हवा मे लहराते थे तब शायद पूरा जमाना झूम जाता रहा होगा और आंखों पर चश्मा अच्छा लगता था । अभी तो मैं सामने बैठे हुए भी ठीक से उनको नही देख पा रहा था । ऑटो के कल्याण पुर क्रॉस करते हुए मैंने अपनी तरफ़ से बात शुरू की ।

मैं: आपने जल्द ही कोलेज जोइन किया है ।

मैडम: हाँ यही कोई २ महीने हो गए ।

मैं: तो क्या अकेली रहती है ।

मैडम: हाँ । मनीष नाम है तुम्हारा ।

मैं: हाँ , पर आपको कैसे पता ।

मैडम: हँसते हुए... तुम्हारे बारे मे तो मुझे सब कुछ पता है ।

मेरी तो जैसे जान ही निकल गई । मन ही मन न जाने कुछ सेकंडो मे क्या क्या मैं सोच गया और जब होश आया तो मैंने देखा कि हम माईल स्टोन नम्बर ४ IIT Kanpur के गेट तक पहुँच चुके थे ।

मैडम : तुम कोलेज के functions मे play और skit वगेरह मे बहुत हिस्सा लेते हो । पढने मे भी अच्छे हो , सुदेशना बता रही थी ।

मैं तो बिल्कुल खुश सा हो गया था क्योकि जो काम मैं शायद करने मे १० दिन और लगत वो सुदेशना मैडम ने बस थोडी बात मे ही कर दिया । अचानक ही मैं सुदेशना मैडम का बहुत शुक्र गुज़र हो गया था और ऐसा लगने लगा था की भगवान् मुझ पर उस दिन सारा प्यार लुटा देना चाहते थे ।


मैं:( थोड़ा खुश होकर ) हाँ कोलेज मे कोई भी function मेरे बिना नही होता।


मैडम: सुना है तुम बहुत अच्छे ऐक्टर हो ।


जब भी कोई ऐसा कहता था तो मैं सपनो मे चला जाता था तब A, B ,C, D ............................Z मे मेरे लिए बी फॉर बॉलीवुड ही होता था और जैसे बॉलीवुड के सारे डायरेक्टर मेरे लिए ही हाथ फैलाये खड़े हों ,सारी बड़ी बड़ी हिरोइन मेरे साथ ही फ़िल्म साइन करना चाहती हो । खास कर प्रीती जिंटा काश मुझे भी किसी फ़िल्म मे अपना ड्राईवर बना लिया होता । पर अभी मैडम मेरे लिए प्रीटी जिंटा थी , मैंने किसी तरह से अपने आप को सपनो से वापस खिंचा ।


मैं: हाँ , पर पता नही ।
मैडम: क्यो?
मैं: मतलब कुछ ही लोग बोलते है ।
मैडम: अच्छा मैं तुमसे कुछ पूछूं ।
मैं: ................
मैडम: नही नही पढ़ाई से related कुछ भी नही पूछूंगी ।
सच बोलूं मैं तो डर ही गया था की कहीं कुछ पढ़ाई वाला ही न पूछ बैठे ।
मैं : हां पूछिए।
मैडम: हो सकता है ये तुम्हारा पर्सनल मामला हो
मैं तो इसी सोच मे था की काश कोई पर्सनल मामला शुरू हो ।
मैं: हाँ ..........
मैडम: अरे ....... चलो बाद मे बाद करेंगे अभी तो कोलेज आ गया है ।


बहुत ज्यादा मैं दुखी हुआ , ऐसा लग रहा था की आज तो कोलेज जल्दी ही आ गया हो । काश की ऑटो रस्ते मे पंचर हो गया होता । फ़िर मैंने ख़ुद को दिलासा दिया चलो शुरुआत तो हुई । वैसे आखिरी माईल स्टोन हमारा कोलेज भी आ गया था ।

कुछ मैं और कुछ वो ...........2

DAY 6
मैं सुबह सुबह नहाकर जल्दी जल्दी कपड़े प्रेस करने मे लगा था और प्रवेन्द्र बाल ठीक कर रहा था कि तभी बहार गेट पर किसी के खटखटाने कि आवाज़ आई ।


धीरेन्द्र: अरे सर जी आज बहुत सुबह सुबह ।
विवेक : हाँ जरा पंडित जी से मिलने आ गए , सुना है बही कुछ नया गुल खिला रहे है


विवेक मेरा बहुत ही अच्छा दोस्त है , कोई भी जरुरत वो बहुत ज़ल्दी पूरी कर देता था , वैसे भी हमको किस बात कि ज़रूरत होती थी- बस कभी कभी पैसों की। मुझे आज भी याद है विवेक ने ही मुझे पहला मोबाइल ( सेकंड हैण्ड पैनासोनिक का सेट ) १८०० रुपये मे दिलाया था और लगभग ६ महीनो बाद फ़िर से हमने उसे १८०० मे बेच दिया था। ऐसा दोस्त सभी चाहते थे । पर इन सब बातों से अलग वो एक अच्छा इंसान भी है । अगर मैं और अच्छे दोस्तों की बात करूँ तो शिखर का नाम सबसे ऊपर आता है, मुझे पता नही किइस कहानी मे मैं उसका कितना इस्तेमाल कर पाता हूँ वैसे है बड़ा ही interesting कैरेक्टर ।


धीरेन्द्र: हाँ सर जी आज कल निमिषा ( ग़लत नाम ) मैडम के प्यार मे खो गए है ।


तभी दीपक तौलिया लपेटे हुए भागते हुए आ गया । अरे क्यों? न आता उसके सबसे पसंदीदा सर जो आए थे थोड़ा मोटे मोटे पेट पर हाथ जो फिरने को मिलने वाला था ।

तभी


विवेक: दूर चलो नंगे चले आते हो ।
दीपक : क्या सर जी अब आप इस तरह से हमको भगायेंगे ।
अतुल:सर जी.......................
विवेक : क्या है बक..... ( गली) दूर हटो ।


अगर हमारी भाषा मे कहा जाता तो अतुल कि गा...( ) मे बस इतना ही दम था , इसके आगे वो कुछ भी नही बोल सकता था । तब तक मैं भी कपड़े पहन कर दीपक के रूम से अपने रूम मे आ गया था।


अभी भी प्रवेन्द्र बाल ही ठीक कर रहा था।


विवेक ( प्रवेन्द्र से) : क्या भइया लगता है आज पूर्वी ( ग़लत नाम ) को मना कर ही रहोगे ।
प्रवेन्द्र : नही यार वो हमको कहा ...............
विवेक: पंडित जी से कुछ सीखो ।
मैं ( विवेक से) : यार विवेक तुम चलो मैं बाद मे आऊंगा ।
विवेक ( प्रवेन्द्र से) : चलो भइया तुम्ही चलो ।
दीपक: सर जी मैं चलूँ ।
विवेक : नही तुम रुको।
और विवेक और प्रवेन्द्र चले गए ।
मैं: मैं भी चल रहा हूँ ।
अतुल : सर जी रुकिए मैं भी चल रहा हूँ ।
विकास: और मैं भी ।
धीरेन्द्र : मैं भी ।
मैं: भइया तुम लोग चलो मैं यही रुकता हूँ ।
मैं: मैं चल रहा हूँ तुम लोग बाद मे आना अभी कोई देर नही हुई है ।
मैं चल दिया ।


......रेस्टुरेंट के सामने GT Road के दूसरी तरफ़ ..........................
9: 20 AM


गुड मोर्निंग मैडम मैं बोला
निमिषा ( मैडम) : गुड मोर्निंग।
मैं: आज बस चली गई , आपको आने मे देर हो गई ।
निमिषा (मैडम) : क्या ........? हाँ आज मुझे थोडी देर हो गई ।


थोडी देर के लिए कोई नही बोल रहा था कि अचानक मुझे अतुल , धीरेन्द्र और विकास के हँसने कि आवाजे सुनाई दी । जब मैंने उनकी तरफ़ देखा तो क्या देखता हूँ कि विकास मुझे Tumps Up कर रहा था ।


तभी रूट नम्बर २ ( बस का नम्बर ) जो हमारे रास्ते से होती हुई जाती थी आई । सभी चढ़ गए केवल मुझे और मैडम को छोड़ कर ।


जाना नही है क्या? मैडम बोली
मैं : जाना है पर बहुत भीड़ है उसमे ।
मैडम : आज तो कम है ।
मैं : नही फ़िर भी है ।
मैडम: तो वो ऑटो से चलो पर उसमे बस से ज्यादा भीड़ है ।
मैं: ओके
मैडम: चलो नही तो collage के लिए लेट हो जाएगा ।


वो ऑटो मे पीछे और मैं ड्राईवर के बगल मे बिना मन कि मजबूरी मे बैठ गया यह सोच कर कि चलो आगे पीछे ही सही हैं तो एक ही ऑटो मे ....
contd..................





Monday, October 13, 2008

Hi.......... you people encouraged me

Thank you friends for such valuable comments. Special thanks to Neha, Stuti and Prianka for admiring my writing, also that makes me more confidant. Ankit and Nimesh your comments are really good and to make my stories more interesting I will surely take words of you both .
Love you all guys!!!

Sunday, October 12, 2008

कुछ मैं और कुछ वो ...

लगी शर्त मैं जोर से चिलाया .....................

सभी शांत हो गए , फ़िर मैंने अपने चारो ओर देखा मैं अभी यही सोच रहा था की लगता है मैं जोर से चिल्लाया हूँ तभी ॥

प्रवेन्द्र : चल लग गई शर्त पर कितने की

मैं: ये तुम लोग decide कर लो पर ये जान लो इस मामले मे मैं कभी हरा नही हूँ

दीपक: चलिए सर जी देख लेंगे आप क्या करते है

और धीरेन्द्र पत्ते बाटने लगा । हम यूँ ही पूरा टाइम बिता देते थे अपने इंजीनियरिंग के समय मे (मैं और प्रवेन्द्र तब 3rd year मे थे , मैं mechanical branch मे और प्रवेन्द्र EI मे था और हमारे साथ धीरेन्द्र , विकास और अतुल रहा करते थे ) कभी ताश खेलते हुए और कभी क्रिकेट । हा पढ़ते भी थे लेकिन केवल EXAMs के समय ।

अतुल और विकास एक साथ : सर ये लोग आपको चढा रहे है
मैं: कोई नही अब तो शर्त लग ही गई है
धीरेन्द्र: पर सर जी कितने दिनों की
दीपक: एक सेम की ।
मैं : चलो ठीक है ।


हम लोग ज्यादातर एक ही गेम खेलते थे लकड़ी ( ताश का गेम) पर एक आदमी को बैठना पड़ता था ज्यादातर तो अतुल को ही बिठाते थे और अगर कभी जोगी दादा आ गए तो वो भी खेल लेता था । गेम के रूल्स भी अजीब थे जो लास्ट आता उसे ४ गुलाब जामुन देने होते थे जो उसे ऊपर होता उसे ३ और इसी तरह २ और १ । हलाकि गुलाब जामुन सब मिल कर खाते थे । शर्त भी बड़ी अजीब सी थी कॉलेज की नई मैडम को पटना था , वैसे था बड़ा कठिन काम पर मैं मान गया था पर बाद मे शर्त कुछ नही रह गई थी बस पटना ही था उन्होंने नया नया ...... डिपार्टमेन्ट अभी जों किया था और जहाँ हम रहा करते थे वही पास की गली मे वो भी रहती थी ।


DAY 1


सुबह ८ बजे


मैं : ओये प्रवेन्द्र रुक जा यार मुझे नहाने जाना है
प्रवेन्द्र: अबे जल्दी किस बात की है थोड़ा रुक जाओ मैं जल्दी मे हूँ
मैं : अबे प्लीज़ मैं बस २ मिनट मे निकलता हूँ
प्रवेन्द्र : चलो ठीक है
लगभग १० मिनट बाद
प्रवेन्द्र: साले २ मिनट का बोल कर इतना टाइम लगा दिया
मैं : अबे यार समझेकर न आज शर्त का पहला दिन है
दीपक : क्या सर जी आज जल्दी किस बात की है
मैं : है न जल्दी
दीपक: मैं भी साथ चलूँगा
मैं: अबे तुम वह क्या करोगे जा कर
दीपक : नही सर जी मैं भी साथ चलूँगा
मैं : चलो
दीपक : अच्छा जाइये आपका मुझे ले जाने का मन नही है
मैं : सच तो यही है
अतुल: सर जी मैं तैयार हूँ मैं चलूँ
मैं: चलो भइया तुम ही चलो
मैं : ओके प्रवेन्द्र मैं जा रहा हूँ
प्रवेन्द्र : ओके ( बाल सुखाते हुए)
यही कुछ ५ मिनट के अन्दर मैं और अतुल , .... रेस्टुरेंट के सामने GT Road के दूसरी तरफ़
अतुल: सर जी चलिए नही तो collage के लिए देर हो जायेगी ।
मैं: तुम जाओ
अतुल: और आप , प्रवेन्द्र सर भी जा चुके है
मैं: कोई नही जाने दो
और वाकई मुझे देर हो गई लेकिन मैडम नही आई ।
collage पहुच कर ,
मैं: (दीपक से ) यार पता करना ........( मैडम का नाम बोलते हुए) मैडम नही आई है क्या ?
दीपक : ठीक है
और वाकई मैडम नही आई थी नही मैं तो डर गया था कि लगता है उन्होंने रहने का ठिकाना बदल लिया है क्या ?
वैसे मुझे इतना तो पता था कि कोई लड़की ज्यादा टाइम नही लेती पाटने मे लेकिन यहाँ गेम कुछ और ही था एक तो ज़्यादा उम्र ऊपर से मेरे ही collage की टीचर । सच बोलूं तो कुछ कुछ नया experience भी था ।
यही कोई ९:२० मिनट पर ( रोज़) मैं अकेले और कोई और नही है साथ मे सभी जा चुके है । हमारे यहाँ से यही कोई ५० मिनट लगता था collage तक पहुँचने मे तो सभी मुझे छोड़ कर चले जाते थे ।

DAY 2, 3 , 4 और 5


......रेस्टुरेंट के सामने GT Road के दूसरी तरफ़ ..........................
मैं: गुड मोर्निंग मैडम
मैडम: गुड मोर्निंग
इन चार दिनों मे हमारी कोई और बात नही हुई हलाकि वो जरूर समझ गई कि मैं यहाँ रोज़ उनके लिए ही रुक रहा हूँ
contd.............




sorry guys !!!

My last blog hurted few of my friends, but to be very frank whatever I had written in my last blog is only my imagination and creativity there is no resemblance with any living or non living person on this earth. मेरा पहला Gtalk Flirt .... पूरा खेल means nothing to reality; this is just my thoughts and tried to put in a manner so that it seems real.

One my thing guys I have just started writing blog just months back, so I assume mistakes are bound to happen at the initial stage.

I generally do lot of home work before putting things on blog and I suppose you people appreciate this.

Finally I am sorry if
मेरा पहला Gtalk Flirt .... पूरा खेल has hurted feeling of any one of you।

You all are very special to me.


Yours Manish