Friday, October 24, 2008

दीपावली की अनेकों शुभकामनाये















मुझे पढ़ने वालों को मेरी तरफ़ से दीपावली कि ढेर सारी शुभकामनायऐ, ईश्वरहमारे देश को और उन्नतशील और संपन्न बनाये । जय हिंद !!!


आइये हम सब मिलकर भगवान् गणेश की पूजा करें ।


जय गणेश , जय गणेश , जय गणेश देवामाता जाकी पारवती , पिता महा देवा ।
एक दंत दयावंत , चार भुजा धरी माथे पर तिलक सोहे , मुस कि सवारी पान चढ़े , फूल चढ़े , और चढ़े मेवा लडूँ का भोग लगे , संत कारे सेवा ।


गणेश , जय गणेश , जय गणेश देवामाता जाकी पारवती , पिता महा देवा ।

अनधन को आंख देत ,कोधीन को काया बझान को पुत्र देत , निर्धन को माया


सूर्य शाम शरण ए , सफाल कीजे सेवा ।
जय गणेश , जय गणेश , जय गणेश देवामाता जाकी पारवती , पिता महा देवा ।

अंत मे एक बार फ़िर से

दीपक का प्रकाश हर पल आपके जीवन मे एक नई रौशनी लाये बस यही शुभकामना है हमारी आपके लिए दिवाली के इस पवन अवसर पर ।

आपका मनीष त्रिपाठी

whatever you want



You can call me a sinner
You can call me a saint
Celebrate me for who I am
Dislike me for what I ain't
Put me up on a pedestal
Or drag me down in the dirt
Sticks and stones will break my bones
But your names will never hurt
I'll be the garden
You be the snake
All of my fruit is yours to take
Better the devil that you know
Your love for me will grow
Because
This is who I am
You can
Like it or not
You can
Love me or leave meCus I'm never gonna stop

Wednesday, October 22, 2008

एक और ख़त

प्रिय .........,
कल रात जब मैं सोने गया तो सिर्फ़ और सिर्फ़ तुम्हारा चेहरा मेरी आखों मे था मेरी नींद को न जाने कब और कैसे तुमने चुरा लिया पता ही नही चला। अब मैं उस पतंग की तरह हूँ जिसकी डोर तुम्हारे पास है न जाने कब और क्यों तुम मुझे उस डोर से खुद तक खीच लेती हो और मैं बिना किसी विरोध के तुम्हारे पास चला आता हूँ अब तो मेरे आसमा मे न तो दूसरी पतंग है न ही दूसरी कोई डोर जो कुछ है मैं और तुम ही हैं । मेरी तुमसे बस इतनी सी गुजारिश है कि तुम मुझे कुढ़ से मत छोड़ देना नही तो मैं न जाने कहा और किस आसमान मे उड़ता रहूँगा।

अच्छा लगा कल रात तुमसे फ़ोन पर बात करके, मुझे पता है कि आज भी हम फ़ोन पर बात कर सकते थे लेकिन मुझे लगा कि भावनाओ को व्यक्त करने के लिए आज के युग मे भी पेन और पेपर से अच्छा कोई साधन नही है । ख़त मे लोग एक दुसरे का चेहरा भी देख लेते है अब मुझे लगता है कि ये बात सच है। इससे पहले ऐसा कभी महसूस नही हुआ । अब तो हर वक्त तुम्हारा ख्याल रहता है हर वक्त ।

कोलेज ख़तम होते ही मैं फिर से कोलेज सुरु होने का इंतज़ार करने लगता हूँ । बातें अभी और भी है जिन्हें मैं अभी नही बताना चाहता , पता नही तुम्हे मेरा ख़त लिखना कैसा लगे।
ढेर सरे प्यार के साथ ख़त लिखना बंद करता हूँ ।

तुम्हारा..............................

Monday, October 20, 2008

कुछ मैं और कुछ वो..९ ( आखिरी मुलाक़ात)




वैसे तो दिल्ली का ट्रिप अच्छा रहा पर पूरे समय मैं अपनी बेवकूफी पर पछताता रहा। और शायद बनारस पहुँच कर मैडम को भी लगा होगा की अगर मनीष यहाँ होता ज़रूर पूरा बनारस घूमता शायद ये मेरे दिल की आवाज़ थी कि अगर मैं वहां होता तो हम पूरा बनारस साथ घूमते।


DAY ४२ (शायद)
G.T .Road के दूसरी तरफ़ ..... रेस्टुरेंट के सामने
9:20 AM
आज भी मौसम काफी ज़्यादा ठंडा था बल्कि शायद आज का दिन हो मेरे लिए पूरी तरह से ठंडा होने वाला था , पर इस बात का एहसास मुझे अभी नही था । मैं तो आज भी वैसे ही रोज़ कि तरह खुशी खुशी G।T.Road तक पहुंच जाना चाहता था ।
मैडम: मनीष कैसा रहा तुम्हारा Exam ।
मैं: ठीक नही हुआ , मैंने कोई तयारी नही कि थी । आपका कैसा हुआ ?
मैडम: मेरा Exam तो अच्छा हुआ।
इसके बात पता नही क्यों वो कुछ देर तक चुप सी हो गई ?
मैं: क्या हुआ?
मैडम: कुछ नही , आज तुम्हारी लास्ट क्लास कब ख़तम हो रही है ।
मैं: आज तो last period तक क्लास है ।
मैडम: ठीकहै, चलो बाद मे मिलते हैं तुमसे कुछ कहना है।


उन्होंने दाई और से आती कोलेज बस को देखते हुए कहा और बस कुछ ही पल मे वो बस पर चढ़ कर चली गई । आज उनका चेहरा कुछ परेशान लग रहा था शायद अगर वो यही बात खुशी से बोलते तो मैं कुछ और सोच रहा होता , लेकिन बात अहम् और गंभीर लग रही थी । और मैं भी परेशान हो गया था ,न जाने कैसे कैसे ख्याल मेरे दिमाग मे आने लगे थे । किसी तरह से कोलेज ख़तम होने पर मैं कोलेज के गेट के बहार मैडम का इंतज़ार करने लगा , आज विवेक से मैंने बाइक मांग ली थी ।


5:00 PM कोलेज के गेट पर ................
मैडम मुझे मेरी ओर आती हुई नज़र आई और मैंने उनके अपने साथ बीके पर चलने को इनवाईट किया । वो बेहिचक साथ चलने को तैयार हो गई थी।
हम बिना बात किए हुए रेस्टुरेंट के सामने तक आ चुके थे इस बात का कारण मुझे नही पता कि ऐसा क्यों हुआ ?
रेस्टुरेंट के सामने
मैडम: मनीष तुम्हे भूख तो नही लगी ।
मैं: हाँ कुछ कुछ तो लगी है ।
मैडम : चलो चल कर कुछ खाते है।
मैं: ठीक है चलिए।
मैडम: चलो ।


रेस्टुरेंट के अन्दर ... सीडियां उताकर कर नीचे
बिल्कुल ideal date का महाल था । पर मुझे कुछ अजीब सा लग रहा था । हलकी हलकी रौशनी चरों ओर फैली हुई थी , गाना भी महाल के मुताबिक ही बज रहा था ....
प्यार को हो जाने दो...
प्यार मे खो जाने दो
इंतजार किसा है .... ऐतबार किसका है ...
अभी न हुआ तो फ़िर कभी नही कभी नही ...
ला ल ला ... ला ल ला...


मैडम: क्या पसंद है?
मैं: जो बोलो वही ।
मैडम: पिज्जा .....
मैं: ओके ।
मैडम: वेटर वन गार्लिक मीडियम पिज्जा विद एक्स्ट्रा चीज़ एंड वन कोक ।
मैं: एंड टू ग्लासएज ।
वेटर : ओके मैडम , स्माल वेट ऑफ़ १० मिनट।
मैं: कानपूर के वेटर भी अच्छी इंग्लिश बोलने लगें है ।
मैडम: हाँ ।
मैं: ( माहौल को समझाते हुए) आप कुछ सुबह बोल रहीं थी ।
मैडम: हाँ ।
मैं: क्या?
मैडम: देखो मनीष मैं जानती हूँ कि तुम्हारे मन मे क्या चल रहा है । पर ये सब नही हो सकता , हाँ रही फ्रेंडशिप कि बात तो वो हमारी है । मैं तुम्हारी भावनाओ कि कद्र करती हूँ , मुझे भी तुम्हारा साथ अच्छा लगता अह पर हर चीज़ कि एक लिमिट होती है ।


एक साँस मे इतनी बात बोल दी उन्होंने कि मैं कुछ बोल ही नही पाया ।


मैडम: तुम समझ रहे हो न मैं क्या बोल रही हूँ ।
मैं: हाँ ।
मैडम: अभी पढ़ाई पर दिमाग लगाओ ।
मैं: हाँ
मैडम: एक बात और मैं तुम्हे टॉप करते हुए देखना चाहती हूँ।
मैं: ओके
मैडम: मनीष मैं अब यहाँ से जा रहीं हूँ कल मेरा लास्ट डे है ।
मैं: क्या ?
मैडम: हाँ कुछ दिन पहले मेरा DRDO (Defence Research and Development Organisation ) का रिजल्ट आया है और अब मैं पुणे जा रही हूँ ।
मैं: congrats...
मैडम: थैंक यू । और तुम अपना ख्याल रखना ।


फ़िर हमने शान्ति से पिज्जा खाया , और अपने अपने घर वापस आ गए पर चलने से पहले चलते चलते उन्होंने मेरा हाथ अपने दोनों हाथ से पकड़ कर बोला मनीष अपना ध्यान रखना । यही मेरी मैडम से आखिरी मुलाक़ात थी क्योकि मैं जान कर अगले दिन कोलेज नही गया था ।

मेरे रूम पर शाम 6:15 PM
विवेक: भाई अब तुम शर्त जीत गए , ओए प्रवेन्द्र चलो पैसे निकोले पार्टी है ।
मैं: रहने दो पार्टी मैं दे दूंगा , अभी मेरी तबियत ठीक नही है ।
मैं अपने रूम मे चला आया और दिवार पे लिख दिया " i have to do for somebody" और फ़िर मैंने पुरी मेकेनिकल ब्रांच मे उस साल टॉप किया और अपना वादा निभाया ।
शायद अब मेरी कहानी ख़तम हो चुकी है अगर कभी उनसे मुलाक़ात नही हुई तो वैसे मेरे पास उनका email id होते हुए भी मैंने कभी उनको मेल नही की




चेतावनी :
इस कहानी के कुछ पात्र और घटनाएँ काल्पनिक है जिसका किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई सम्बन्ध नही है