Tuesday, October 14, 2008

कुछ मैं और कुछ वो ...........2

DAY 6
मैं सुबह सुबह नहाकर जल्दी जल्दी कपड़े प्रेस करने मे लगा था और प्रवेन्द्र बाल ठीक कर रहा था कि तभी बहार गेट पर किसी के खटखटाने कि आवाज़ आई ।


धीरेन्द्र: अरे सर जी आज बहुत सुबह सुबह ।
विवेक : हाँ जरा पंडित जी से मिलने आ गए , सुना है बही कुछ नया गुल खिला रहे है


विवेक मेरा बहुत ही अच्छा दोस्त है , कोई भी जरुरत वो बहुत ज़ल्दी पूरी कर देता था , वैसे भी हमको किस बात कि ज़रूरत होती थी- बस कभी कभी पैसों की। मुझे आज भी याद है विवेक ने ही मुझे पहला मोबाइल ( सेकंड हैण्ड पैनासोनिक का सेट ) १८०० रुपये मे दिलाया था और लगभग ६ महीनो बाद फ़िर से हमने उसे १८०० मे बेच दिया था। ऐसा दोस्त सभी चाहते थे । पर इन सब बातों से अलग वो एक अच्छा इंसान भी है । अगर मैं और अच्छे दोस्तों की बात करूँ तो शिखर का नाम सबसे ऊपर आता है, मुझे पता नही किइस कहानी मे मैं उसका कितना इस्तेमाल कर पाता हूँ वैसे है बड़ा ही interesting कैरेक्टर ।


धीरेन्द्र: हाँ सर जी आज कल निमिषा ( ग़लत नाम ) मैडम के प्यार मे खो गए है ।


तभी दीपक तौलिया लपेटे हुए भागते हुए आ गया । अरे क्यों? न आता उसके सबसे पसंदीदा सर जो आए थे थोड़ा मोटे मोटे पेट पर हाथ जो फिरने को मिलने वाला था ।

तभी


विवेक: दूर चलो नंगे चले आते हो ।
दीपक : क्या सर जी अब आप इस तरह से हमको भगायेंगे ।
अतुल:सर जी.......................
विवेक : क्या है बक..... ( गली) दूर हटो ।


अगर हमारी भाषा मे कहा जाता तो अतुल कि गा...( ) मे बस इतना ही दम था , इसके आगे वो कुछ भी नही बोल सकता था । तब तक मैं भी कपड़े पहन कर दीपक के रूम से अपने रूम मे आ गया था।


अभी भी प्रवेन्द्र बाल ही ठीक कर रहा था।


विवेक ( प्रवेन्द्र से) : क्या भइया लगता है आज पूर्वी ( ग़लत नाम ) को मना कर ही रहोगे ।
प्रवेन्द्र : नही यार वो हमको कहा ...............
विवेक: पंडित जी से कुछ सीखो ।
मैं ( विवेक से) : यार विवेक तुम चलो मैं बाद मे आऊंगा ।
विवेक ( प्रवेन्द्र से) : चलो भइया तुम्ही चलो ।
दीपक: सर जी मैं चलूँ ।
विवेक : नही तुम रुको।
और विवेक और प्रवेन्द्र चले गए ।
मैं: मैं भी चल रहा हूँ ।
अतुल : सर जी रुकिए मैं भी चल रहा हूँ ।
विकास: और मैं भी ।
धीरेन्द्र : मैं भी ।
मैं: भइया तुम लोग चलो मैं यही रुकता हूँ ।
मैं: मैं चल रहा हूँ तुम लोग बाद मे आना अभी कोई देर नही हुई है ।
मैं चल दिया ।


......रेस्टुरेंट के सामने GT Road के दूसरी तरफ़ ..........................
9: 20 AM


गुड मोर्निंग मैडम मैं बोला
निमिषा ( मैडम) : गुड मोर्निंग।
मैं: आज बस चली गई , आपको आने मे देर हो गई ।
निमिषा (मैडम) : क्या ........? हाँ आज मुझे थोडी देर हो गई ।


थोडी देर के लिए कोई नही बोल रहा था कि अचानक मुझे अतुल , धीरेन्द्र और विकास के हँसने कि आवाजे सुनाई दी । जब मैंने उनकी तरफ़ देखा तो क्या देखता हूँ कि विकास मुझे Tumps Up कर रहा था ।


तभी रूट नम्बर २ ( बस का नम्बर ) जो हमारे रास्ते से होती हुई जाती थी आई । सभी चढ़ गए केवल मुझे और मैडम को छोड़ कर ।


जाना नही है क्या? मैडम बोली
मैं : जाना है पर बहुत भीड़ है उसमे ।
मैडम : आज तो कम है ।
मैं : नही फ़िर भी है ।
मैडम: तो वो ऑटो से चलो पर उसमे बस से ज्यादा भीड़ है ।
मैं: ओके
मैडम: चलो नही तो collage के लिए लेट हो जाएगा ।


वो ऑटो मे पीछे और मैं ड्राईवर के बगल मे बिना मन कि मजबूरी मे बैठ गया यह सोच कर कि चलो आगे पीछे ही सही हैं तो एक ही ऑटो मे ....
contd..................





5 comments:

Anonymous said...

your story is getting more interesting.
don't use abusive language.

Anonymous said...

bahi badhe rahon kuch galiyan puri bhi likh diya karo.

Anonymous said...

i just came to this blog i really don't know you and you don't know me. but your story is really interesting .
keep it up .
deepak

Anonymous said...

one more thing i just want to add . please jaldi khatam karo , kafi interesting hai.

Rohit said...

good and Interesting story ... Bhai naam galat hi sahi par padne mein maza aa raha hain ...
Dekhte hain aage kya hota hain ....