Wednesday, October 15, 2008

कुछ मैं और कुछ वो ......४

अब हम लगभग रोज़ बातें करने लगे थे और एक दूसरे को अच्छी तरह से समझने लगे थे, मेरी दिल मे अब तक उनके लिए बहुत ज़्यादा इज्ज़त बढ़ चुकी थी , शायद अब मैं सच मे उनको पसंद करने लगा था , अब खेल खेल नही रह गया था अब मैं serious हो रहा था , लेकिन मुझे रात मे कभी भी उनके सपने नही आए थे शायद इसके पीछे कारण कुछ और था वो ये की मैं अभी तक किसी को भूल नही पाया था । अभी जल्दी ही मेरा ब्रेक ऑफ़ हुआ था , वैसे इस ब्रेक ऑफ़ मे मैं बहुत खुशनसीब निकला क्योकि सच्चाई ये थी मैं उसके के साथ आपना ये सम्बन्ध आगे नही बढ़ा सकता था । तो मैंने यहाँ अपने नए प्यार को रोकने की कोशिश करनी शुरु कर दी ।

अब मैं कुल लगभग ४ -५ दिन कोलेज उस जगह से कोलेज जाना छोड़ दिया ।

कब तक रोक पता ख़ुद को और एक दिन ..........

DAY 25 ( शायद)
......रेस्टुरेंट के सामने GT Road ..........................
9: 00 AM
काफी ज़्यादा कोहरा था और ठण्ड भी बहुत थी की तभी मेरे आगे एक ऑटो रिक्शा रुका , वैसे तो कल की तरह आज भी कोलेज की छुट्टी थी और मैं मेडिकल कोलेज जाने के लिए रुका था कोई चांस नही था की निमिषा मैडम से मुलाक़ात हो ।

हैलो मनीष कैसे हो एक मीठी सी आवाज़ ने मुझे उस ठण्ड भरी सुबह मे अचानक से मेरे कानो मे गर्माहट ला दी आवाज़ पहचानी हुई थी। मैंने देखा जो ऑटो मेरे सामने रुका था उससे निमिषा मैडम उतर रही थी ।

मैडम: हैलो मनीष कैसे हो ?
मैं: ठीक हूँ मैडम आप कैसी है और इतनी सुबह सुबह आप कहाँ से आ रहीं है ?
मैडम: घर से

अब तक मुझे पता चल चुका था कि उनका घर लखनऊ मे था , बल्कि यूँ भी कह सकते है कि लखनऊ भी शायद उनका परमानेंट ऐडरेस नही था ,मैडम के फादर ऐसी जॉब मे थे जिसमे ट्रान्सफर बहुत जल्दी जल्दी हो जाया करता था । कुछ ही दिनों बाद वो लोग इलाहाबाद शिफ्ट हो गए थे।

मैं तो बस उनको देखता ही रह गया था जींस , ओवर कोट और स्पोर्ट्स शूज़ मे वो किसी hollywood कि anglina jolie से कम नही लग रही थी बस इतना देखते ही मैं अपने काम पर फ़िर लग गया । उनके पास इस टॉम रायडर कि हेरोइन के जैसे काफी सामान था और शायद उसको उनके पापा या भाई ने ही ट्रेन पर चढ्या होगा ।

मैं: मे आई हेल्प यू ? (मैंने बड़े ही स्टाइल से पुछा )
मैडम: नो ... नो.. आई कैन डू इट
मैं: जाने दीजिये बहुत सामान है ।
मैडम : ओके तो हेल्प करो
मैं: (एक बैग और सूटकेस पकड़ते हुए ) इतना सारा सामान आप कहाँ से ले आई ?
मैडम: वो घर से
मैं: ओके

मैं उनके रूम तक सामान ले कर गया पास ही था और गेट के बहार मैं उनको छोड़ कर आ गया। शायद उनके लैंड लोर्ड ( माकन मालिक) किसी बाहरी लड़के को देख कर नाराज़ होते । मैं इस बात को समझ ता था तभी तो मैडम के घर न बुलाने का कारण समझ गया था । उनका घर ( कानपुर मे ) उसी गली मे था जिसे पार करता हुआ मैं कोलेज के लिए बस पकड़ता था , मुझे ये तो पता था कि वो first flour पर रहती थी पर हमेशा उन खिड़कियों पर परदा लगा रहता था ।

गेट के बहार
मैडम: थैंक यू मनीष
मैं: ओक बाय बाय
और मैं वह से वापस ऑटो पकड़ कर मेडिकल कोलेज आ गया ।

पर उस दिन शायद मेरा दिल मुझ से लड़ रहा था कि मैंने शर्त लगा कर गलती की, शायद मुझे सच का प्यार हो गया था । इस लडाई के और भी कई कारण हो सकते थे शायद मेरे ब्रेक ऑफ़ के इतनी जल्दी फ़िर से मैं प्यार मे .................... पता नही क्या क्या ? मन मे एक जबदस्त द्वंद शुरु हो गया था । मैं ये सोच रहा था की मैं कब सुधारूँगा , बचपन से आज तक न जाने कितनी बार प्यार मे खो चुका था । अब तो पता भी नही चलता था की ये प्यार है या बस एक सम्मोहन । ऐसा बहुत कम होता है लाइफ मे जब ख़ुद से ही ख़ुद का टकराओ हो और जब हो तो समझ लेना चाहिए की कोई बड़ी सीरियस बात है । अंतत: मैंने ये सोचा की मनीष त्रिपाठी तुम आगे बढो देखा जाएगा जो भी होगा ।

DAY 26 (शायद)
कोलेज मे मैं और सुदेशना मैडम उनके ऑफिस मे साथ बैठे थे और क्लास की बातें कर रहे थे। अब तो सुदेशना मैडम मुझे नही पढाती थी लेकिन मैं फ़िर भी उनसे मिलने चले जाया करता था बहुत अहसान है उनके मुझ पर। तभी वहाँ मीत मैडम आ गई ।
मीत मैडम : अच्छा तो आप भी यहाँ है ( मेरी तरफ़ इशारा करते हुए)।

मैं: हाँ
सुदेशना मैडम : अरे हाँ ये तो बहुत देर से बैठा है ।
मैं: मैं जाऊ क्या ?
दोनों लोग साथ साथ : नही नही तुम जाओ मत
मीत मैडम: बेटा अभी तो तुमसे बहुत काम है ।
मैं समझ गया था इशारा किस तरफ़ है और ये भी की इसके पीछे कौन कौन है विवेकानंद और शिखर मिश्रा , जब नाराज़गी हो तो पुरा नाम लेना होता है तभी तो विवेकानंद और शिखर मिश्रा ।
मीत मैडम: क्या मनीष सुधर जाओ
मैं: नही मैडम ऐसी कोई बात नही है ।
सुदेशना मैडम: मनीष सुधर जाओ ।
मैं: मैडम ऐसा कुछ भी नही है ।
मीत मैडम: न हो तो बेहतर है।
मैं: अच्छा तो अब मैं चलू ।
मीत मैडम : अच्छा हाँ तुम्हारे पास पिछले साल के annual function के फोटो ग्राफ्स है न ।
मैं: हाँ है
मीत मैडम: कल मुझे दे देना
मैं: ओके

मैंने इतना भी नही पूछा किक्यो चाहिए। बाद मे पता चला कोलेज कि वेब साईट के लिए चाहिए थे । मुझे अगर किसी से डर लगता था कोलेज मे तो केवल मीत मैंम से और किसी से नही हलाकि वो प्यार मुझे बहुत करती थी ।

DAY 27 (शायद)
......रेस्टुरेंट के सामने GT Road के दूसरी तरफ़ ..........................
contd.......

4 comments:

amisha said...

maine ab tak ki aapki kahani padhi kafi acchi lagi ab iska ant jaanne ki iccha ho rahi hai.

amisha said...

अच्छा ये जरुर बता दीजियेगा कि ये कहानी सच्ची है या नही , जहाँ तक मुझे लग रहा है ये कहानी सच्ची है । लेकिन कुछ मसाले के साथ ।

Rohit said...

Haan yaar Meet Mam bahut achhi thi .... Rahul bhi unki badi tareef karta tha ....
Jaldi se end karo ... Story kaafi interesting hain .....

Anonymous said...

i should again say that u r a good writer . start writing novels.