दो दिन बाद .............
DAY 30 (शायद )
सुबह सुबह यही कोई 8:30 AM , मैंने आज तय किया था की आज कोलेज नही जाऊंगा , कोई खास क्लास भी नही थी, मेरे कोलेज न जाने के पीछे भी एक लॉजिक था जो पिछली रात के वजह से था। कल रात मैंने मैडम को फ़ोन किया था ।
पिछली रात
DAY 29 ( शायद)
लगभग रात 9:00 बजे । ठण्ड मे कांपते हुए , हमारे घर ( कानपुर मे जिसमे मैं और मेरे दोस्त रहते थे ) की छत पर , मैं पूरी तरह से ठण्ड का आनंद ले रहा था पर असल मे मैं ठण्ड और घबराहट दोनो वजहों से काँप रहा था ।
रात पूरी तरह से काली थी चाँद मुझे देख कर मंद मंद मुस्कुरा रहा था । शायद चाँद तारों को पता था की मेरे मन के अन्दर किस तरह की भावनाए सागर ली लरों की तरह हिलोरे भर रही थी । जब मैंने मैडम से उनका फ़ोन नम्बर माँगा था तब भी इतनी घबराहट नही हुई थी जीतनी मुझे उन्हें उस दिन फ़ोन करने से पहले हो रही थी ।
कभी घड़ी देखता तो कभी छत से दूसरो के कमरों मे देख कर टाइम पास कर रहा था लेकिन अभी तक फ़ोन करने कि हिम्मत नही हुई थी ।
9:45PM
अब तक तो मेरे हाथ बर्फ कि तरह जम रहे थे मुझे 7-8 degree तापमान मे खुली छत पर घुमाते हुए ४५ मिनट से भी ज्यादा हो चुका था अब तो घाल भी टमाटर हो रहे थे , और मैंने बड़ी हिम्मत करके फिल्मी स्टाइल मे अपनी फिल्मी हेरोइन माननीया एंजलिना जोली जी को फ़ोन लगाया ।
मोबाइल फ़ोन कि घंटी बजते ही ...........
फ़ोन: ट्रिंग ट्रिंग.......
मेरा दिल : जय हनुमान ज्ञान गुन सागर
जय कपीस तिह लोग उजागर
राम दूत अतुलित बलधामा
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अभी मेरा मन तरीके से डर को भगा नही पाया था कि दूसरी तरफ़ से फ़ोन से आवाज़ आई ।
मैडम: हैलो
मैं: हैलो
मैडम: कौन ?
मैं: मैं मनीष ।
मैडम: बोलो मनीष ।
मैं: आ..आप कल से को... कोलेज नही आई ।
मैडम: हाँ घर आ गई थी कुछ काम था । और तुम कांप क्यों रहे हो?
मैं: वो ॥ वो ठण्ड लग रही है ।
मैडम: क्या कहीं बहार हो ?
मैं: नही छत पर आया हूँ सोचा कि आप से पूछ लूँ कि आप कि तबियत तो ठीक है न।
मैडम:( हँसते हुए ............ । ) चलो मैं ठीक हूँ तुम जाओ नीचे नही तो मुझे तुम्हे फ़ोन करके पूछना पड़ेगा कि तुम तो बीमार नही हो।
मैडम: क्या हुआ? कल दोपहर तक कानपुर आ जाउंगी और परसों से कोलेज।
मैं : ओके बाय बाय
मैडम: गुड नाईट । जाओ सो जाओ
और उन्होंने फ़ोन काट दिया , मेरे आस पास का तापमान अचानक से २० डिग्री तक पहुँच गया था मौसम बहुत अच्छा लगने लगा था । मैं इसी मस्ती और सोच विचार मे १५ मिनट तक छत पर और रुक गया था ।
वापस
DAY 30 (शायद)
8:30 AM
विकास: अरे सर जी उठिए ।
मैं: अरे यार सर मे दर्द हो रहा है ।
विकास: क्यो? कोलेज नही चलाना है
मैं: नही मेरी तबियत नही ठीक है ।
प्रवेन्द्र : कल रात तुम कहाँ गए थे ।
मैं :वही तो भुगत रहा हूँ। यार मत जगाओ नींद आ रही है और फीवर भी है ।
पूरा शरीर दुःख रहा था और सच मे बुखार हो गया था , मैं सोच रहा था कि अगर जल्दी बात करली होती तो ये दर्द न सहना पड़ता । खैर प्यार मे हर दर्द मीठा लगता है बस यही सुकून था ।
तभी ॥
दीपक: (अपने स्टाइल मे केवल अंडर गारमेंट्स मे भागता हुआ ) क्या हुआ सर जी ।
मैं: साले ले लो । इंतना दर्द है ऊपर से तुम मेरे ही ऊपर कूद रहे हो ।
दीपक: सॉरी सर।
मैं: (नाराज़ होते हुए ) क्या बक... ( गली) है , तुम अभी जाओ ।
आज फ़िर सुबह 9:20 मिनट हो गए थे और सभी धीरे धीरे जा रहे थे मुझे सिर्फ़ छोड़ कर मैं अपनी करनी पर भुगत रहा था। पर एक बात का सुकून अभी भी था कि आज मुझे जी टी रोड कोई मिस नही करेगा ( असल मे जस्ट इसका उल्टा)। मैं किसी तरह से नहा धोकर कुढ़ को शीशे मे अच्छी तरह से देखकर फ़िर सो गया । असल मे अगर आप ख़ुद से ज्यादा सुंदर इंसान को प्यार करे दो शीशा आपका अच्छा दोस्त हो जाता है ।
दोपहर तक तबियत मे कुछ सुधर महसूस होने पर मैंने सोचा कि अब क्या किया जाए । तभी ख्याल आया कि मीत मैडम ने मुझसे कुछ फोतोग्रप्स मंगवाए थे । मैंने अपनी अलमारी से एल्बम निकला और उसमे से function कि अच्छी अच्छी फोटोस अलग कर ली अब उनमे भी अपने प्ले कि अलग कर दी और हर फोटोस के पीछे बहुत अच्छे अच्छे कमेंट्स लिख दिए असल मे मैंने सोच लिया था कि ये फोटोग्राफ्स मैं निमिषा मैडम के हाथो ही मीत मैडम तक पहुचवाउंगा । और ये भी सोच लिया कि एक बार और कल कि सुबह जी टी रोड को अलविदा कहा जाए ,प्यार मे हिन्दी उर्दू के बहुत क्लोसे हो जाती है तो मैं भी थोड़ा थोड़ा उर्दू मे भी सोचने लगा था ।
रात 8:30 बजे
मैडम के घर के बहार
मैं घर कि बेल बजाते हुए इस उम्मीद मे कि मैडम दरवाजा खोलने आएँगी । पर हुआ खुदा को कुछ और ही मंजूर था ( उर्दू...........................) ।
कौन है .... एक लडखडाती हुई आवाज़ सुनाई दी ।
मैं: दरवाज़ा खोलिए ।
अन्दर से एक बूढी दादी निकली और जैसे उन्होंने मेरी सारी आशाओं पर उन्होंने जाडे कि रात मे ठंडा पानी डाल दिया हो ।
दादी जी : क्या है ?
मैं: वो निमिषा मैडम है ।
दादी जी : हाँ है ।
मैं: क्या मैं मिल सकता हूँ
दादी जी : क्या काम है वो ऊपर रहती है ।
मैं:वो कुछ फोटोस देने थे उनको ।
दादी जी : अच्छा फोग्रफर हो । पैसे लेने है ।
मुझेतो ऐसा लगा कि जैसे किसी ने मेरी काबलियत पर शक किया हो । खैर मैं तो इस इंतज़ार मे था कि शायद ऊपर जाने को मिले ।
मैं: नही मैं उनका स्टुडेंट हूँ
दादी जी : फोटोस दो और जाओ ।
मैं: ठीक है ।
मैंने फोटोस दादी जी को दी और दुखी मन से वापस आ गया , एक अच्छा काम मैंने किया था कि सारी फोटोस को लिफाफे मे बंद कर के ( लिफाफा मैं चिपकाया नही था) और लिफाफे के ऊपर लिख दिया था कि फोटोस मीत मैडम को दे दीजियेगा मैं कल कोलेज आ नही सकूँगा। वैसे तो दादी जी ने मेरा सारा प्लान चौपट कर दिया था । मैं बस मैडम को देखना चाहता था और वो भी नही हो सका था ।
DAY 31 (शायद)
9:20 AM
......रेस्टुरेंट के सामने GT Road के दूसरी तरफ़ ..........................
3 comments:
yaar kal main tumhara blog nahi pad paayi thi . lekin man me baar baar yahi ho raha tha ki aage ky ahua hoga .
lekin jo bhi kahao tumne accha likha hai
accha ja rahe ho
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